Wednesday, 7 September 2011

जफा और वफा

ये जफा का दौर है, जिसमे वफ़ा कुछ भी नहीं आप ने गर मुझको छला इसमें नया कुछ भी नहीं.
अहले सरमाया ही हैं सनम हर चीज़ के मालिक इस जमे में तेरा और मेरा कुछ  भी नहीं.
पत्थरों तुम ही बताओ   तुम्हे पूजूं मैं किस लिए जब तुम्हारी पूजा से मिला कुछ भी नहीं.
चाहते हो एस करना तो वतन को लूट  लो ये  जुर्म है दोस्त वो जिसकी सजा कुछ भी नहीं
जहा सड़कों पर सरेआम लूट जाती हो ज़िन्दगी वहा बेबसी के सिवा कुछ भी नहीं 
जहा   सड़क से संसद और न्यालय तक बिक चुकी है,  वह आरजू और मिन्नत कुछ भी नहीं

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