मुझे लगता है डर
भगवन से नहीं आदमी से
दुसमन से नहीं दोंस्तों से
काँटों से नहीं फूलों से
मुझे लगता है डर
रात के अंधेरों से नहीं
दिन के उजालों से
किसी की बातों से नहीं
चेहरे की खामोशियों से
मुझे लगता है डर
इनकार से नहीं प्यार से
भगवन से नहीं आदमी से
दुसमन से नहीं दोंस्तों से
काँटों से नहीं फूलों से
मुझे लगता है डर
रात के अंधेरों से नहीं
दिन के उजालों से
किसी की बातों से नहीं
चेहरे की खामोशियों से
मुझे लगता है डर
इनकार से नहीं प्यार से
बेवफाई से नहीं वफ़ा से
इंतजार से नहीं उम्मीदों से
इंतजार से नहीं उम्मीदों से
मुझे लगता है डर
अजनबी शहर में नहीं
अपनों की भीड़ में
अजनबी शहर में नहीं
अपनों की भीड़ में
यहाँ नहीं है कोई अपना सा
न अपेक्षा है किसी से
न आशा है कुछ पाने की
न अपेक्षा है किसी से
न आशा है कुछ पाने की
यहाँ नहीं है कोई अपना सा
हा मुझे लगता है डर .............
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