Monday, 13 August 2012

मुझे लगाता है डर

मुझे लगता है डर
भगवन से नहीं आदमी से
दुसमन से नहीं दोंस्तों से
काँटों से नहीं फूलों से
मुझे लगता है डर
रात के अंधेरों से नहीं
दिन के उजालों से
किसी की बातों से नहीं
चेहरे की खामोशियों से
मुझे लगता है डर
इनकार से नहीं प्यार से 
बेवफाई से नहीं वफ़ा से
इंतजार से नहीं उम्मीदों से 
मुझे लगता है डर
अजनबी शहर में नहीं
अपनों की भीड़ में 
यहाँ नहीं है कोई अपना सा
न अपेक्षा है किसी से
न आशा है कुछ पाने की 
यहाँ नहीं है कोई अपना सा 
हा मुझे लगता है डर .............

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